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मम्मी जी अब घर के मुखिया मेरे पति है

मम्मी जी अब घर के मुखिया मेरे पति है:-घर के बाहर टैक्सी आकर रुकी थी। अनुराधा ने बाहर झांककर देखा तो मालती जी टैक्सी के बाहर निकल कर इंतजार कर रही थी कि घर में से कोई तो उन्हें लेने आए। लेकिन घर में बेटा राजेश, बहू अनुराधा दोनों मौजूद थे। पर किसी ने भी बाहर आने की जहमत नहीं उठाई।

इतने में राजेश ने अनुराधा से पूछा,

” कौन है अनुराधा?”

” और कौन होगा? तुम्हारी माँ है”

कहकर वो दरवाजा खुला छोड़ कर वापस अपने काम में लग गई। इधर राजेश ने भी ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया और अपना आईपीएल देखने में तल्लीन हो गया, जिसके लिए आज उसने छुट्टी ली थी।

मम्मी जी अब घर के मुखिया मेरे पति है

कुछ देर बाहर मालती जी इंतजार करती रही। पर टैक्सी वाले को तो वापस जाना था। उसने मालती जी को टोका तो टैक्सी वाले को कहकर उन्होंने अपना सामान घर के दरवाजे तक रखवाया और उसे पैसे देकर घर में आ गई। मालती जी पहले से काफी कमजोर हो चुकी थी। जैसे तैसे कदम बढ़ाती हुई घर में प्रवेश की।

मालती जी ने राजेश और अनुराधा दोनों की तरफ देखा। लेकिन दोनों ने ही उनकी तरफ देखने की जहमत नहीं उठाई। दोनों की ऐसी बेरुखी देखकर उनका दिल रोने को हुआ। जैसे तैसे अपने कमरे की तरफ जाने लगी कि इतने में अनुराधा बोली,

” अरे उधर कहां जा रहे हो माँ जी, अब वो आपका कमरा नहीं है। आपका सामान यहां स्टोर रूम में रख दिया है”

वो एक पल के लिए वही खड़ी अनुराधा की तरफ देखती रह गई, पर कुछ बोल ना पाई। बस आंखों में आंसू आ गए। अनुराधा ने धीरे से राजेश के हाथों पर चिकोटी मारी और इशारे से उसे माँ से कहने को कहा। तब राजेश ने माँ की तरफ देखते हुए बड़ी बेफिक्री से कहा,

” अब आपको बड़े कमरे की क्या जरूरत है माँ। पहले तो चलो पापा थे, पर अब तो वो भी नहीं है। और वैसे भी अब आपका पोता पोती होने वाला है तो बड़े कमरे की जरूरत तो हमें पड़ेगी ना। इसलिए आपका सामान स्टोर रूम में शिफ्ट कर दिया है। वैसे भी बड़ा कमरा तो घर के मुखिया का होता है। और अब पापा के जाने के बाद इस घर का मुखिया मैं ही तो हूं”

“मुखिया?? “

मालती जी के मुंह से सिर्फ इतना सा ही निकला तो राजेश बोला,

” और नहीं तो क्या? अब मैं घर के खर्चे करूंगा तो मैं ही मुखिया। और अब सब को मेरी बात माननी  ही पड़ेगी”

मालती जी की आंखों में अभी भी आंसू थे। उन्होंने स्टोर रूम के पास बने छोटे कमरे की तरफ देखा तो राजेश बोला,

” वो क्या है ना माँ, अनुराधा की डिलीवरी के लिए उसकी बहन आ रही है। उसे परेशानी ना हो तो इस कारण वो रूम उसके लिए रखा है। और गेस्ट रूम में तो आपको पता है मेहमान रहते हैं। अब वो कोई मेहमान थोड़ी ना है। वो तो घर की ही है। कल को बच्चा होगा, कोई प्रोग्राम करेंगे, कोई मेहमान आए तो उनके लिए वो रूम तो रखना पड़ेगा ना इसलिए गेस्ट रूम को हाथ भी नहीं लगाया”

राजेश की बात सुनकर जैसे मालती जी के पैरों को किसी ने जंजीरों से बांध दिया हो। पैर स्टोर रूम की तरफ बढ़ ही नहीं रहे थे। जैसे तैसे एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि राजेश बोला,

” अरे मां अपना सामान भी तो लेती जाओ। और दरवाजा बंद कर दो। और आपको कुछ खाना पीना हो तो रसोई से ले लेना”

मालती जी जैसे तैसे वापस दरवाजे पर आई। और अपने सामान को घसीटते हुए तो रूम में ले आई। रूम में आकर देखा तो एक चारपाई बिछी हुई थी। उनके शादी के समय की पुरानी गोदरेज रखी हुई थी और वो पुराना टेबल रखा हुआ था, जिसे मालती जी ने कई बार बेचने की कोशिश की। पर उनके पति पवन जी ने उसे बेचने नहीं दिया। कहते थे,

“अरे खराब थोड़ी ना हुआ है। क्या पता कब काम में आ जाए”

पर ये नहीं पता था कि ये टेबल मालती जी के ही काम में आएगी। आंखों में आंसू लिए वो चारपाई पर बैठ गई। अभी दो महीने पहले तक तो सब ठीक था।बेटे बहू पिता के डर से ही सही सेवा तो करते थे। घर में हंसी खुशी का माहौल रहता था।

एक दिन पवन जी ने अपने पैतृक गांव जाने की जिद की तो मालती जी ने मना कर दिया,

” रहने दो, बहू का छठा महीना है। ऐसे में उसे छोड़कर जाना अच्छी बात नहीं”

पर राजेश और अनुराधा के समझाने पर वो उनके साथ गांव चली गई। वहां पर जेठ जेठानी, देवर देवरानी, सब का परिवार था। वहां जाने के कुछ दिन बाद ही उनकी तबीयत बिगड़ गई। और कुछ ही घंटे में उन्होंने दम तोड़ दिया। सब कुछ जैसे वहीं रुक गया था।

उनका अंतिम संस्कार भी वही पैतृक गांव में हुआ था। पंद्रह दिन के कार्यक्रम होने के बाद राजेश और अनुराधा तो वापस आ गए। लेकिन मालती जी को उनकी जेठ जेठानी ने वही रख लिया था। यह कहकर कि सवा महीने बाद ही अपनी जगह छोड़ ना।

आज सवा महीने बाद वो गांव से लौटी थी। वो भी अकेले। वहां तो पूरा परिवार स्टेशन पर छोड़ने आया था, पर यहां राजेश स्टेशन तक लेने नहीं आया। कह रहा था कि बहुत जरूरी काम है। पर यहाँ मैच देख रहा है।

और तो और यहां घर का सारा सिस्टम ही बदल चुका था। इतनी जल्दी बेटे बहू मुंह मोड़ेंगे, इसकी तो बिल्कुल उम्मीद भी नहीं थी। सीधा स्टोर रूम में ही पहुंचा दिया।

अभी अनुराधा जी ये सब सोच ही रही थी कि इतने में बाहर से शोर सुनाई दिया। जाकर देखा तो मालती जी के लिए ना उठने वाले बेटे बहू बाहर अनुराधा के मायके वालों का स्वागत कर रहे थे। मालती जी को इतनी देर हो गई घर में आए हुए। किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं पूछा। वही बहू के मायके वालों के लिए बेटा रसोई में जाकर खुद पानी के ट्रे सजा कर ले आया।

इतने लोगों के बीच अपने आप को अकेला महसूस करती हुई मालती जी वापस उस कमरे में आ गई। दो घंटे तक उसी कमरे में बैठी रही। लेकिन ना कोई चाय ना कोई नाश्ता खाना, कुछ भी नहीं। दो घंटे बाद लगा कि अनुराधा के मायके वाले वापस जा चुके हैं। शायद  वो उसकी बहन और मम्मी को छोड़ने आए थे। क्योंकि वो दोनों ही अब घर में मौजूद थी। उन्हीं की आवाज बाहर से आ रही थी।

अब मालती जी को भूख का एहसास हो रहा था। आखिर वो खुद ही उठी और रसोई घर में गई। रसोई में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। खाना भी बाहर से मंगवाया गया था, वो झूठे बर्तन ये सब बता रहे थे।

इतने में अनुराधा रसोई में आई,

“क्या ढूंढ रही है माँ जी? देखिए खाना तो बचा नहीं। और मुझे याद भी नहीं रहा कि आपके लिए खाना रखना था। आप दूध बिस्किट खा लीजिए या फिर अपने लिए कुछ बना लीजिए। मेरी हिम्मत नहीं है खाना बनाने की”

कहकर अनुराधा रसोई के बाहर आ गई। मालती जी की भी हिम्मत नहीं थी खाना बनाने की। एक तो सवा महीने पहले का गम अभी तक दिल से गया नहीं था। अपने किसी प्रिय की मौत तो वैसे भी हिम्मत तोड़ देती है, फिर ये तो उनके पति थे। ऊपर से ट्रेन का सफर थका देने वाला था। हिम्मत होती भी कहाँ से? वो अपने लिए एक गिलास पानी लेकर वापस कमरे में आ गई।

थोड़ी देर तक बैठी आंसू बहाती रही। फिर याद आया कि वहां से निकलते समय देवरानी ने खाना पैक करके दिया था। जिसमें से उन्होंने सिर्फ दो रोटी ही खाई थी। बैग में से खाना निकाला। देखा तो सब्जी खराब हो चुकी थी पर रोटियां सही सलामत थी। उन बची रोटियों से अपना पेट भर मालती जी चारपाई पर लेट गई।

काफी देर तक वो करवटें बदलती रही। आखिर करवटें बदलते बदलते आंखों में आंसू लिए देर रात उन्हें नींद आई। इस कारण से सुबह नींद देर से खुली। उठ कर बाहर आई तो देखा सब हँस बोल कर चाय नाश्ता कर रहे हैं। सब की प्लेट में गरमा गरम पोहे और जलेबी नजर आ रहे थे। मालती जी को देखते ही सब चुप हो गए। इतने में राजेश बोला,

” मां आप अपने कमरे में बैठिए। आपका नाश्ता मैं कमरे में ही लेकर आता हूं”

उसकी बात सुनकर मालती जी वापस कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद राजेश चाय नाश्ता लेकर कमरे में आया और मालती जी को दे कर बोला,

” मां ये नाश्ता कर लो। और भगवान के लिए जहां तक हो सके आप कमरे में ही रहो”

मालती जी हैरानी से राजेश की तरफ देखने लगी। उनके प्रश्नों को भाँपते हुए राजेश बोला,

“देखो मां, मुझे पता है कि आपको पापा के जाने का बहुत दुख है। लेकिन कर भी क्या सकते हैं? उनकी तो उम्र हो गई थी इसलिए वो चले गए। लेकिन आप यूँ दुखी चेहरा लेकर बार-बार अनुराधा के सामने आओगे तो होने वाले बच्चे पर गलत असर पड़ेगा। इसलिए कह रहा हूं आप अंदर ही रहो। और वैसे भी सब लोग कहते हैं कि एक विधवा…. “

कहते कहते राजेश एकदम से रुक गया और वापस बाहर चला गया। मालती जी राजेश की बात सुनकर बिल्कुल हैरान रह गई। अब तो उनका दिल जोर-जोर से रो रहा था। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि उनके बेटे में दिल है या पत्थर। वो अपनी मां के लिए ऐसा कैसे सोच सकता है। उसकी मां विधवा है तो उसका साया वो अपनी पत्नी और होने वाले बच्चे पर नहीं पड़ने देना चाहता। अभी दो दिन में उसने मुझे इतना कुछ दिखा दिया तो ये तो मेरी जिंदगी नर्क बना देगा।

सोच सोचकर मालती जी से चाय नाश्ता भी नहीं करते बना। उनकी रुलाई फूट पड़ी। वो इतनी जोर जोर से रो रही थी पर उन्हें चुप कराने के लिए कोई भी कमरे में नहीं आया।

आखिरकार काफी देर तक रो लेने के बाद खुद ही थक हार कर चुप हो गई। अपने पल्लू से अपने आंसू खुद ही पोछ लिये। आखिर काफी देर तक मौन रहने के बाद मालती जी एक निर्णय पर पहुंची।

आखिर रात को जब राजेश अपने ऑफिस से वापस घर आ गया। उसके बाद बाहर वाले कमरे में बैठकर सब लोग हंसी मजाक कर रहे थे। उस समय मालती जी भी उस कमरे में आ गई और वही सोफे पर आकर बैठ गई। उनके आते ही सब लोग चुप हो गए जबकि राजेश ने घूर कर मालती जी को देखा। जैसे कह रहा हो कि सुबह समझाया था, ना फिर यहाँ क्यों आए हो?

लेकिन मालती जी चुपचाप राजेश की तरफ देख रही थी। आखिर राजेश को बोलना ही पड़ा,

” माँ आपको सुबह समझाया था ना। फिर क्यों आई हो आप बाहर? कहा था ना आप का साया मेरे बच्चे के लिए ठीक नहीं है”

मालती जी ने उसको मुस्कुराकर कहा,

” हां, याद है तूने कहा था कि मेरा साया तेरे बच्चे के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि मैं विधवा हो गई हूँ। पर बेटा, जब मेरा साया तेरी पत्नी और बच्चे पर ठीक नहीं है, तो अपनी पत्नी को यहां से लेकर तो कही और चले जा”

मालती जी की बात सुनकर राजेश भड़क गया,

” मैं क्यों घर छोड़ कर जाऊंगा? अब घर का मुखिया मैं हूं। और आप इस तरह से मुझ से बात नहीं कर सकती”

” मुखिया?? मुखिया जी आपको बता दूं कि यह घर मेरे नाम पर है। तो किस खुशी में आप घर के मुखिया बनने को तैयार हो गए”

तभी अनुराधा बोली,

” माँ जी आपको बता दे कि अब घर के सारे खर्चे ये उठाते हैं। आप के बस की बात नहीं है आटे दाल के लिए पैसे कमाना”

अब तो मालती जी खड़े होते हुए बोली,

” अच्छा! उसकी चिंता तू मत कर। वैसे भी तेरे पति के हाथ के आटे दाल मैंने नहीं खाए। जब तक मेरे पति थे उन्होंने घर का खर्चा दिया था। उनकी जब मौत हुई तब मैं गांव में थी। और जब से मैं यहां आई हूं  तब से मैंने तुम्हारे घर का तो कुछ नहीं खाया। इसलिए मुझे आटे दाल के धौंस मत देना। मैं अपने आटे दाल का बंदोबस्त खुद कर लूंगी। तुम लोग अपना बंदोबस्त कहीं और कर लो”

मालती जी का साफ रुख देखकर अब तो अनुराधा की मम्मी भी बोली,

” अरे समधन जी, आप तो बच्चों की बात को दिल पर ले रही हो। बच्चे ही तो है। माफ कर दो”

” माफ कीजिएगा समधन जी, ये बच्चे नहीं हैं। बच्चे की मां बाप बनने वाले हैं। और उस समय आप क्यों नहीं बोली, जब ये मेरे साथ इस तरह का व्यवहार कर रहे थे। आप भी तो कल से ही घर में है ना। मुझे कुछ नहीं सुनना है। अपनी बेटी और दामाद से कहिए कि अपना बंदोबस्त कहीं और कर ले। मैं अब इन्हें इस घर में नहीं रहने दूंगी”

मालती जी ने भी समधन के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा।

आखिर सबके समझाने के बाद भी मालती जी झुकने को तैयार नहीं थी। काफी देर बाद फिर ये निर्णय निकला कि अनुराधा को उसकी मम्मी मायके ले जाएगी और वही उसकी डिलीवरी करवाएगी। उस दौरान राजेश यहां घर का बंदोबस्त कर लेगा।

और अगर बंदोबस्त नहीं कर पाता है तो तब तक यहां का किराया देना पड़ेगा।

मौलिक व स्वरचित

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