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भारतीय फिल्म निर्देशक हिंदी फिल्म उद्योग में प्रसिद्ध हास्य अभिनेता

स्लो डायलॉग बोलकर हंसाने वाले कॉमेडियन असित सेन की कहानी:नौकर की स्टाइल कॉपी कर फिल्मों में स्टार बने, घरवालों से झूठ बोलकर सीखी थी एक्टिंग…

आज हम ब्लैक एंड व्हाइट फिल्मों में एक्टिंग और कॉमेडी के लिए मशहूर असित सेन की बात करेंगे । असित सेन अपनी अलग पहचान रखते थे। बेहद धीमी और स्लो आवाज से डायलॉग डिलीवरी करना उनकी खासियत थी। ‘बीस साल बाद’ की अपनी भूमिका में इसी स्टाइल की वजह से वे सुपरहिट हो गए।

असित सेन ने करीब 250 बांग्ला और हिंदी फिल्मों में काम किया। असित सेन के फिल्मों में आने का किस्सा भी दिलचस्प है। जब वे बंबई पहुंचे तो उन्हें मशहूर फिल्मकार बिमल रॉय के साथ बतौर कैमरामैन काम करना था। दरअसल, असित सेन को फोटोग्राफी का बहुत शौक था।

भारतीय फिल्म निर्देशक हिंदी फिल्म उद्योग में प्रसिद्ध हास्य अभिनेता

उनका उत्तरप्रदेश के गोरखपुर में एक फोटो स्टूडियो भी था। फोटोग्राफी के सिलसिले में वह साल 1949-50 में कोलकाता चले गए। वहां उन्होंने न्यू थिएटर जॉइन किया। वहां एक ड्रामा में एक्टिंग के दौरान बिमल रॉय से उनकी मुलाकात हुई।

इनकी कॉमिक टाइमिंग और बोलने के अंदाज को देखते हुए बिमल रॉय ने इन्हें फिल्म ‘सुजाता’ में प्रोफेसर का रोल दिया। इसके बाद असित बेहतरीन कॉमेडियन के तौर पर पहचाने जाने लगे।

परिवार से बोला झूठ, फिल्मों में काम करने गए कलकत्ता
असित सेन का जन्म 13 मई 1917 को गोरखपुर के बंगाली परिवार में हुआ था। रोजगार के सिलसिले में उनका परिवार पश्चिम बंगाल के जिला बर्दवान से आकर उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में बसा था। असित सेन के पिता कभी रेडियो और ग्रामोफोन की दुकान, तो कभी बिजली के सामान की दुकान चलाते थे।

असित सेन को दुकान पर बैठना तो पसंद नहीं था, लेकिन उन्हें फोटोग्राफी का बेहद शौक था, तो कई समारोह में जाकर फोटो खींचने का काम भी करते थे। असित जब 10वीं पास हुए तो मां चाहती थीं कि उनकी शादी करवा दी जाए, लेकिन असित कुछ और ही चाहते थे।

वे कलकत्ता के न्यू थिएटर्स में जाकर डायरेक्टर नितिन बोस से फिल्म मेकिंग सीखना चाहते थे। असित को समझ नहीं आ रहा था कि कलकत्ता कैसे जाएं। तभी एक शादी के सिलसिले में उनका वहां जाना हुआ। कलकत्ता जाकर असित ने परिवार वालों के सामने ये बहाना बनाया कि उन्हें कलकत्ता में रहकर ‌BCom की पढ़ाई करनी है।

फोटोग्राफी दोबारा खींच लाई गोरखपुर

कलकत्ता आकर असित ने थिएटर में भी हाथ आजमाया और कुछ नाटकों में भी काम किया। धीरे-धीरे उन्हें अपने काम के लिए तारीफ मिलने लगी, लेकिन तभी असित को वापस गोरखपुर जाना पड़ा।

दरअसल गोरखपुर के पुलिस कमिश्नर साहब से असित के पिता की अच्छी पहचान थी। उनका गोरखपुर से तबादला हो गया तो शहर में बड़ा विदाई समारोह रखा गया।

इस समारोह में फोटोग्राफी की जिम्मेदारी असित सेन को देकर उन्हें कलकत्ता से वापस गोरखपुर बुलाया गया। सबको असित की खींची तस्वीरें बेहद पसंद आईं।

असित सेन भी अपनी तारीफ से इतना खुश हो गए कि उन्होंने गोरखपुर में सेन फोटो स्टूडियो खोल लिया। उनका फोटो स्टूडियो अच्छा चल रहा था, लेकिन तभी वर्ल्ड वॉर 2 छिड़ गया। उस दौर में इंडिया में फोटोग्राफी का सारा सामान विदेश से आता था। वॉर की वजह से ऐसा हो नहीं पाया और सेन का फोटो स्टूडियो संकट में आ गया।

मां-दादी का हुआ निधन, असित सेन ने छोड़ दी नौकरी

फोटो स्टूडियो बंद होने की कगार पर पहुंचा तो असित सेन को रोजी-रोटी की चिंता सताने लगी। इस सिलसिले में वो बंबई जा पहुंचे जहां उन्हें एक फिल्म कंपनी में स्टिल फोटोग्राफी का काम मिल गया। नए काम में असित रम गए, लेकिन तभी घर से तार मिला कि मां बीमार हैं, घर आ जाओ।

असित तुरंत गोरखपुर गए। खबर मिली थी मां की बीमारी की, लेकिन उनसे पहले असित की दादी चल बसीं। दादी के निधन के कुछ समय बाद असित की मां का भी निधन हो गया। तीन महीने के अंदर ही घर में हुई दो मौतों से असित टूट गए। न उनसे गोरखपुर में रहा जा रहा था और न ही वे बंबई जाकर दोबारा काम करने की हिम्मत जुटा पा रहे थे।

बिमल रॉय का असिस्टेंट बन शुरू किया फिल्मी करियर

एक दिन असित ने दिल पक्का किया और सब कुछ पीछे छोड़कर फिर से कलकत्ता पहुंच गए। कलकत्ता जाकर असित सेन के साथ क्या हुआ, ये उन्होंने खुद 1960 में दिए एक इंटरव्यू में बताया था, ‘वहां जाकर मेरी मुलाकात अपने दोस्त कृष्णकांत से हुई जो फिल्म ‘बनफूल’ में कानन बाला के साथ काम कर रहा था। कृष्णकांत ने मेरी मुलाकात एक्ट्रेस सुमित्रा देवी और उनके पति देव मुखर्जी से करवाई।

दोनों से ये जान-पहचान आगे मेरे बहुत काम आई। उनकी बदौलत ही मेरी मुलाकात फिल्ममेकर बिमल रॉय से हुई, जो कि तब तक अपनी पहली बंगाली फिल्म ‘उदयेर पाथे’ बना चुके थे और अब हिंदी में बनाने की तैयारी कर रहे थे।

‘उन्हें एक ऐसे असिस्टेंट की तलाश थी जो कि हिंदी में माहिर हो तो उन्होंने मुझे रख लिया। मुझसे पहले वो असिस्टेंट रख चुके थे तो मैं तीसरा असिस्टेंट था, लेकिन धीरे-धीरे अपने काम की बदौलत मैं उनका पहला असिस्टेंट बन गया। इसके साथ मैं कुछ फिल्मों में छोटे-मोटे काम भी करने लगा। मेरी सबसे पहली फिल्म ‘हमराही’ थी, जिसमें बहुत ही छोटा सा रोल प्ले किया।’

1945 से 1949 तक असित सेन न्यू थियेटर्स से ही जुड़े रहे। 50 की शुरुआत में ही बिमल रॉय ने बंबई जाने का फैसला किया और असित सेन को भी अपनी टीम का हिस्सा बनाकर ले गए।’

बिमल रॉय ने बना दिया डायरेक्टर

1956 तक असित सेन बिमल दा के असिस्टेंट बने रहे। 1953 में आई ‘दो बीघा जमीन’ में बतौर प्रोडक्शन एग्जीक्यूटिव और 1953 में रिलीज हुई ‘परिणीता’, 1954 में ‘बिराज बहू’ और 1955 में आई फिल्म ‘देवदास’ में उन्हें बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर क्रेडिट दिया गया। 1956 में बिमल दा ने असित सेन को अपनी ही फिल्म कम्पनी बिमल रॉय प्रोडक्शंस के बैनर में फिल्म ‘परिवार’ के डायरेक्शन का मौका दिया।

इसके तुरंत बाद ही 1957 में असित सेन ने फिल्म ‘अपराधी कौन?’ डायरेक्ट की। इन दो फिल्मों को डायरेक्ट करने के बाद असित फिर से अभिनय की ओर मुड़ना चाहते थे।

डायलॉग बोलने की अनोखी स्टाइल ने बनाया फेमस

उन्होंने फिल्म छोटा भाई साइन कर ली। इस फिल्म में असित को बुद्धू नौकर के किरदार में कॉमेडी करनी थी। उन्हें कुछ नहीं सूझ रहा था कि क्या किया जाए। तभी उन्हें ख्याल आया कि बचपन में उनके घर में एक नौकर एकदम स्लो टेम्पो में बोलता था- ‘का हो बाबू.. का करत हव…’ असित सेन ने उसी स्टाइल को कॉपी कर लिया। ये ट्रिक काम कर गई और असित सेन के पास कॉमेडी रोल्स की लाइन लग गई।

बेहद कम स्पीड में डायलॉग बोलने वाले स्टाइल की वजह से डायरेक्टर उनसे हर फिल्म में इसी तरह से डायलॉग बोलने की मांग करने लगे। खुद बिमल रॉय ने असित की डायलॉग डिलिवरी से प्रभावित होकर उन्हें फिल्म सुजाता में रोल दिया। असित सेन को एक ही तरह की स्टाइल में टाइप्ड होने का डर सताने लगा, लेकिन 1961 में आई फिल्म ‘बीस साल बाद’ ने उन्हें इसी स्टाइल की वजह से बुलंदियों पर पहुंचा दिया।

इस फिल्म में उन्होंने गोपीचंद जासूस का किरदार निभाया था। गोपीचंद जासूस वाला उनका यह किरदार इतना पॉपुलर हुआ कि इसकी बार-बार नकल की गई। और तो और 1982 में अभिनेता राजेंद्र कुमार के भाई फिल्ममेकर नरेश कुमार ने एक फिल्म ‘गोपीचंद जासूस’ ही बना दी।

250 फिल्मों में किया काम

इसके बाद 1963 में ‘चांद और सूरज’, 1965 में ‘भूत बंगला’, 1967 में ‘नौनिहाल’, 1968 में ‘ब्रह्मचारी’, 1969’ में ‘यकीन’ और ‘आराधना’, ‘प्यार का मौसम’, 1970 में ‘पूरब और पश्चिम’, ‘दुश्मन’, ‘मझली दीदी’, ‘बुड्ढा मिल गया’, 1971 में ‘मेरा गांव मेरा देश’, ‘आनंद’, ‘दूर का राही’, ‘अमर प्रेम’, 1972 में ‘बॉम्बे टु गोवा’, ‘बालिका वधू’, 1976 में ‘बजरंग बली’ समेत 250 फिल्मों में साइड किरदार निभाए।

पत्नी की मौत का लगा सदमा, चल बसे असित सेन

असित सेन की शादी मुकुल से हुई थी, जो कलकत्ता की रहने वाली थीं। दोनों के तीन बच्चे हुए। दो बेटे अभिजीत और सुजीत सेन और एक बेटी रूपा। अभिजीत सेन दुलाल गुहा जैसे नामी निर्देशक के असिस्टेंट रहे और फिर बांग्ला फिल्मों में काम कर रहे हैं।
सुजीत सेन कैमरामैन हैं।

असित सेन की पत्नी मुकुल सेन काफी बीमार पड़ गई थीं, जिसके कुछ समय बाद उनकी मौत हो गई । पत्नी की मौत से असित सेन अकेले हो गए और इतना टूट गए कि कुछ महीने बाद वह भी इस दुनिया से चल बसे।

मम्मी जी अब घर के मुखिया मेरे पति है

मम्मी जी अब घर के मुखिया मेरे पति है:-घर के बाहर टैक्सी आकर रुकी थी। अनुराधा ने बाहर झांककर देखा तो मालती जी टैक्सी के बाहर निकल कर इंतजार कर रही थी कि घर में से कोई तो उन्हें लेने आए। लेकिन घर में बेटा राजेश, बहू अनुराधा दोनों मौजूद थे। पर किसी ने भी बाहर आने की जहमत नहीं उठाई।

इतने में राजेश ने अनुराधा से पूछा,

” कौन है अनुराधा?”

” और कौन होगा? तुम्हारी माँ है”

कहकर वो दरवाजा खुला छोड़ कर वापस अपने काम में लग गई। इधर राजेश ने भी ज्यादा कुछ ध्यान नहीं दिया और अपना आईपीएल देखने में तल्लीन हो गया, जिसके लिए आज उसने छुट्टी ली थी।

मम्मी जी अब घर के मुखिया मेरे पति है

कुछ देर बाहर मालती जी इंतजार करती रही। पर टैक्सी वाले को तो वापस जाना था। उसने मालती जी को टोका तो टैक्सी वाले को कहकर उन्होंने अपना सामान घर के दरवाजे तक रखवाया और उसे पैसे देकर घर में आ गई। मालती जी पहले से काफी कमजोर हो चुकी थी। जैसे तैसे कदम बढ़ाती हुई घर में प्रवेश की।

मालती जी ने राजेश और अनुराधा दोनों की तरफ देखा। लेकिन दोनों ने ही उनकी तरफ देखने की जहमत नहीं उठाई। दोनों की ऐसी बेरुखी देखकर उनका दिल रोने को हुआ। जैसे तैसे अपने कमरे की तरफ जाने लगी कि इतने में अनुराधा बोली,

” अरे उधर कहां जा रहे हो माँ जी, अब वो आपका कमरा नहीं है। आपका सामान यहां स्टोर रूम में रख दिया है”

वो एक पल के लिए वही खड़ी अनुराधा की तरफ देखती रह गई, पर कुछ बोल ना पाई। बस आंखों में आंसू आ गए। अनुराधा ने धीरे से राजेश के हाथों पर चिकोटी मारी और इशारे से उसे माँ से कहने को कहा। तब राजेश ने माँ की तरफ देखते हुए बड़ी बेफिक्री से कहा,

” अब आपको बड़े कमरे की क्या जरूरत है माँ। पहले तो चलो पापा थे, पर अब तो वो भी नहीं है। और वैसे भी अब आपका पोता पोती होने वाला है तो बड़े कमरे की जरूरत तो हमें पड़ेगी ना। इसलिए आपका सामान स्टोर रूम में शिफ्ट कर दिया है। वैसे भी बड़ा कमरा तो घर के मुखिया का होता है। और अब पापा के जाने के बाद इस घर का मुखिया मैं ही तो हूं”

“मुखिया?? “

मालती जी के मुंह से सिर्फ इतना सा ही निकला तो राजेश बोला,

” और नहीं तो क्या? अब मैं घर के खर्चे करूंगा तो मैं ही मुखिया। और अब सब को मेरी बात माननी  ही पड़ेगी”

मालती जी की आंखों में अभी भी आंसू थे। उन्होंने स्टोर रूम के पास बने छोटे कमरे की तरफ देखा तो राजेश बोला,

” वो क्या है ना माँ, अनुराधा की डिलीवरी के लिए उसकी बहन आ रही है। उसे परेशानी ना हो तो इस कारण वो रूम उसके लिए रखा है। और गेस्ट रूम में तो आपको पता है मेहमान रहते हैं। अब वो कोई मेहमान थोड़ी ना है। वो तो घर की ही है। कल को बच्चा होगा, कोई प्रोग्राम करेंगे, कोई मेहमान आए तो उनके लिए वो रूम तो रखना पड़ेगा ना इसलिए गेस्ट रूम को हाथ भी नहीं लगाया”

राजेश की बात सुनकर जैसे मालती जी के पैरों को किसी ने जंजीरों से बांध दिया हो। पैर स्टोर रूम की तरफ बढ़ ही नहीं रहे थे। जैसे तैसे एक कदम आगे बढ़ाया ही था कि राजेश बोला,

” अरे मां अपना सामान भी तो लेती जाओ। और दरवाजा बंद कर दो। और आपको कुछ खाना पीना हो तो रसोई से ले लेना”

मालती जी जैसे तैसे वापस दरवाजे पर आई। और अपने सामान को घसीटते हुए तो रूम में ले आई। रूम में आकर देखा तो एक चारपाई बिछी हुई थी। उनके शादी के समय की पुरानी गोदरेज रखी हुई थी और वो पुराना टेबल रखा हुआ था, जिसे मालती जी ने कई बार बेचने की कोशिश की। पर उनके पति पवन जी ने उसे बेचने नहीं दिया। कहते थे,

“अरे खराब थोड़ी ना हुआ है। क्या पता कब काम में आ जाए”

पर ये नहीं पता था कि ये टेबल मालती जी के ही काम में आएगी। आंखों में आंसू लिए वो चारपाई पर बैठ गई। अभी दो महीने पहले तक तो सब ठीक था।बेटे बहू पिता के डर से ही सही सेवा तो करते थे। घर में हंसी खुशी का माहौल रहता था।

एक दिन पवन जी ने अपने पैतृक गांव जाने की जिद की तो मालती जी ने मना कर दिया,

” रहने दो, बहू का छठा महीना है। ऐसे में उसे छोड़कर जाना अच्छी बात नहीं”

पर राजेश और अनुराधा के समझाने पर वो उनके साथ गांव चली गई। वहां पर जेठ जेठानी, देवर देवरानी, सब का परिवार था। वहां जाने के कुछ दिन बाद ही उनकी तबीयत बिगड़ गई। और कुछ ही घंटे में उन्होंने दम तोड़ दिया। सब कुछ जैसे वहीं रुक गया था।

उनका अंतिम संस्कार भी वही पैतृक गांव में हुआ था। पंद्रह दिन के कार्यक्रम होने के बाद राजेश और अनुराधा तो वापस आ गए। लेकिन मालती जी को उनकी जेठ जेठानी ने वही रख लिया था। यह कहकर कि सवा महीने बाद ही अपनी जगह छोड़ ना।

आज सवा महीने बाद वो गांव से लौटी थी। वो भी अकेले। वहां तो पूरा परिवार स्टेशन पर छोड़ने आया था, पर यहां राजेश स्टेशन तक लेने नहीं आया। कह रहा था कि बहुत जरूरी काम है। पर यहाँ मैच देख रहा है।

और तो और यहां घर का सारा सिस्टम ही बदल चुका था। इतनी जल्दी बेटे बहू मुंह मोड़ेंगे, इसकी तो बिल्कुल उम्मीद भी नहीं थी। सीधा स्टोर रूम में ही पहुंचा दिया।

अभी अनुराधा जी ये सब सोच ही रही थी कि इतने में बाहर से शोर सुनाई दिया। जाकर देखा तो मालती जी के लिए ना उठने वाले बेटे बहू बाहर अनुराधा के मायके वालों का स्वागत कर रहे थे। मालती जी को इतनी देर हो गई घर में आए हुए। किसी ने एक गिलास पानी तक नहीं पूछा। वही बहू के मायके वालों के लिए बेटा रसोई में जाकर खुद पानी के ट्रे सजा कर ले आया।

इतने लोगों के बीच अपने आप को अकेला महसूस करती हुई मालती जी वापस उस कमरे में आ गई। दो घंटे तक उसी कमरे में बैठी रही। लेकिन ना कोई चाय ना कोई नाश्ता खाना, कुछ भी नहीं। दो घंटे बाद लगा कि अनुराधा के मायके वाले वापस जा चुके हैं। शायद  वो उसकी बहन और मम्मी को छोड़ने आए थे। क्योंकि वो दोनों ही अब घर में मौजूद थी। उन्हीं की आवाज बाहर से आ रही थी।

अब मालती जी को भूख का एहसास हो रहा था। आखिर वो खुद ही उठी और रसोई घर में गई। रसोई में खाने के लिए कुछ भी नहीं था। खाना भी बाहर से मंगवाया गया था, वो झूठे बर्तन ये सब बता रहे थे।

इतने में अनुराधा रसोई में आई,

“क्या ढूंढ रही है माँ जी? देखिए खाना तो बचा नहीं। और मुझे याद भी नहीं रहा कि आपके लिए खाना रखना था। आप दूध बिस्किट खा लीजिए या फिर अपने लिए कुछ बना लीजिए। मेरी हिम्मत नहीं है खाना बनाने की”

कहकर अनुराधा रसोई के बाहर आ गई। मालती जी की भी हिम्मत नहीं थी खाना बनाने की। एक तो सवा महीने पहले का गम अभी तक दिल से गया नहीं था। अपने किसी प्रिय की मौत तो वैसे भी हिम्मत तोड़ देती है, फिर ये तो उनके पति थे। ऊपर से ट्रेन का सफर थका देने वाला था। हिम्मत होती भी कहाँ से? वो अपने लिए एक गिलास पानी लेकर वापस कमरे में आ गई।

थोड़ी देर तक बैठी आंसू बहाती रही। फिर याद आया कि वहां से निकलते समय देवरानी ने खाना पैक करके दिया था। जिसमें से उन्होंने सिर्फ दो रोटी ही खाई थी। बैग में से खाना निकाला। देखा तो सब्जी खराब हो चुकी थी पर रोटियां सही सलामत थी। उन बची रोटियों से अपना पेट भर मालती जी चारपाई पर लेट गई।

काफी देर तक वो करवटें बदलती रही। आखिर करवटें बदलते बदलते आंखों में आंसू लिए देर रात उन्हें नींद आई। इस कारण से सुबह नींद देर से खुली। उठ कर बाहर आई तो देखा सब हँस बोल कर चाय नाश्ता कर रहे हैं। सब की प्लेट में गरमा गरम पोहे और जलेबी नजर आ रहे थे। मालती जी को देखते ही सब चुप हो गए। इतने में राजेश बोला,

” मां आप अपने कमरे में बैठिए। आपका नाश्ता मैं कमरे में ही लेकर आता हूं”

उसकी बात सुनकर मालती जी वापस कमरे में चली गई। थोड़ी देर बाद राजेश चाय नाश्ता लेकर कमरे में आया और मालती जी को दे कर बोला,

” मां ये नाश्ता कर लो। और भगवान के लिए जहां तक हो सके आप कमरे में ही रहो”

मालती जी हैरानी से राजेश की तरफ देखने लगी। उनके प्रश्नों को भाँपते हुए राजेश बोला,

“देखो मां, मुझे पता है कि आपको पापा के जाने का बहुत दुख है। लेकिन कर भी क्या सकते हैं? उनकी तो उम्र हो गई थी इसलिए वो चले गए। लेकिन आप यूँ दुखी चेहरा लेकर बार-बार अनुराधा के सामने आओगे तो होने वाले बच्चे पर गलत असर पड़ेगा। इसलिए कह रहा हूं आप अंदर ही रहो। और वैसे भी सब लोग कहते हैं कि एक विधवा…. “

कहते कहते राजेश एकदम से रुक गया और वापस बाहर चला गया। मालती जी राजेश की बात सुनकर बिल्कुल हैरान रह गई। अब तो उनका दिल जोर-जोर से रो रहा था। उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि उनके बेटे में दिल है या पत्थर। वो अपनी मां के लिए ऐसा कैसे सोच सकता है। उसकी मां विधवा है तो उसका साया वो अपनी पत्नी और होने वाले बच्चे पर नहीं पड़ने देना चाहता। अभी दो दिन में उसने मुझे इतना कुछ दिखा दिया तो ये तो मेरी जिंदगी नर्क बना देगा।

सोच सोचकर मालती जी से चाय नाश्ता भी नहीं करते बना। उनकी रुलाई फूट पड़ी। वो इतनी जोर जोर से रो रही थी पर उन्हें चुप कराने के लिए कोई भी कमरे में नहीं आया।

आखिरकार काफी देर तक रो लेने के बाद खुद ही थक हार कर चुप हो गई। अपने पल्लू से अपने आंसू खुद ही पोछ लिये। आखिर काफी देर तक मौन रहने के बाद मालती जी एक निर्णय पर पहुंची।

आखिर रात को जब राजेश अपने ऑफिस से वापस घर आ गया। उसके बाद बाहर वाले कमरे में बैठकर सब लोग हंसी मजाक कर रहे थे। उस समय मालती जी भी उस कमरे में आ गई और वही सोफे पर आकर बैठ गई। उनके आते ही सब लोग चुप हो गए जबकि राजेश ने घूर कर मालती जी को देखा। जैसे कह रहा हो कि सुबह समझाया था, ना फिर यहाँ क्यों आए हो?

लेकिन मालती जी चुपचाप राजेश की तरफ देख रही थी। आखिर राजेश को बोलना ही पड़ा,

” माँ आपको सुबह समझाया था ना। फिर क्यों आई हो आप बाहर? कहा था ना आप का साया मेरे बच्चे के लिए ठीक नहीं है”

मालती जी ने उसको मुस्कुराकर कहा,

” हां, याद है तूने कहा था कि मेरा साया तेरे बच्चे के लिए ठीक नहीं है। क्योंकि मैं विधवा हो गई हूँ। पर बेटा, जब मेरा साया तेरी पत्नी और बच्चे पर ठीक नहीं है, तो अपनी पत्नी को यहां से लेकर तो कही और चले जा”

मालती जी की बात सुनकर राजेश भड़क गया,

” मैं क्यों घर छोड़ कर जाऊंगा? अब घर का मुखिया मैं हूं। और आप इस तरह से मुझ से बात नहीं कर सकती”

” मुखिया?? मुखिया जी आपको बता दूं कि यह घर मेरे नाम पर है। तो किस खुशी में आप घर के मुखिया बनने को तैयार हो गए”

तभी अनुराधा बोली,

” माँ जी आपको बता दे कि अब घर के सारे खर्चे ये उठाते हैं। आप के बस की बात नहीं है आटे दाल के लिए पैसे कमाना”

अब तो मालती जी खड़े होते हुए बोली,

” अच्छा! उसकी चिंता तू मत कर। वैसे भी तेरे पति के हाथ के आटे दाल मैंने नहीं खाए। जब तक मेरे पति थे उन्होंने घर का खर्चा दिया था। उनकी जब मौत हुई तब मैं गांव में थी। और जब से मैं यहां आई हूं  तब से मैंने तुम्हारे घर का तो कुछ नहीं खाया। इसलिए मुझे आटे दाल के धौंस मत देना। मैं अपने आटे दाल का बंदोबस्त खुद कर लूंगी। तुम लोग अपना बंदोबस्त कहीं और कर लो”

मालती जी का साफ रुख देखकर अब तो अनुराधा की मम्मी भी बोली,

” अरे समधन जी, आप तो बच्चों की बात को दिल पर ले रही हो। बच्चे ही तो है। माफ कर दो”

” माफ कीजिएगा समधन जी, ये बच्चे नहीं हैं। बच्चे की मां बाप बनने वाले हैं। और उस समय आप क्यों नहीं बोली, जब ये मेरे साथ इस तरह का व्यवहार कर रहे थे। आप भी तो कल से ही घर में है ना। मुझे कुछ नहीं सुनना है। अपनी बेटी और दामाद से कहिए कि अपना बंदोबस्त कहीं और कर ले। मैं अब इन्हें इस घर में नहीं रहने दूंगी”

मालती जी ने भी समधन के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा।

आखिर सबके समझाने के बाद भी मालती जी झुकने को तैयार नहीं थी। काफी देर बाद फिर ये निर्णय निकला कि अनुराधा को उसकी मम्मी मायके ले जाएगी और वही उसकी डिलीवरी करवाएगी। उस दौरान राजेश यहां घर का बंदोबस्त कर लेगा।

और अगर बंदोबस्त नहीं कर पाता है तो तब तक यहां का किराया देना पड़ेगा।

मौलिक व स्वरचित

Mahesh Anand प्रभावशाली अभिनेता का दर्द भरा अंत एक बहुत ही प्रभावशाली अभिनेता की कहानी है।

महेश आनंद का दर्द भरा अंत एक बहुत ही प्रभावशाली अभिनेता की कहानी है।

महेश आनंद एक फ़िल्मी बैक ग्राउंड का होकर भी जिन्हें विलेन के राइट हैंड का ही काम ज़्यादा मिला लेकिन अपनी मेहनत और लगन से उसने फ़िल्मी दुनियाँ में अपनी एक ऐसी ख़ास जगह बना ली कि दर्शक उसे कभी नहीं भुला पायेंगे। 13 अगस्त 1961 को मुंबई में जन्मे महेश आनंद का जीवन भी काफी मुफलिसी में गुजरा था। जब वो महज दो साल के थे, तभी उनकी मां का देहांत हो गया था। महेश आनंद की मां तारा देवी भी एक्ट्रेस थीं। महेश ने काफी संघर्ष किया और मॉडलिंग मे किस्मत आजमायी। फिल्मों में आने से पहले वो भारत के टॉप मॉडल्स में शुमार थे। इसके अलावा महेश आनंद ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट भी रह चुके हैं। अपना फिल्मी करियर शुरू करने से पहले वो दुनियाभर के प्रोफेशनल्स फाइट्स में हिस्सा लेते थे। महेश आनंद फिल्म ‘टारजन’ के लिए डयरेक्टर की पहली पसंद थे, लेकिन किसी कारणवश उनको यह रोल नहीं मिल सका।

बहरहाल फ़िल्मों में छोटे छोटे रोल करते हुए महेश 80 और 90 के दशक के एक चर्चित ऐक्टर बन चुके थे। उन्होंने हिंदी , तमिल , तेलुगु और मलयालम फिल्मों में भी काम किया। कभी विलेन के राइट हैंड का किरदार निभाने वाले महेश को उनके लुक की वज़ह से दर्शकों ने इतना पसंद किया कि उन्हें कई फिल्मों में मुख्य खलनायक की भूमिका भी मिलने लगी। महेश आनंद ने शहंशाह, मजबूर, स्वर्ग, थानेदार, विश्वात्मा, गुमराह, खुद्दार, बेताज बादशाह, विजेता और कुरुक्षेत्र जैसी हिट फिल्मों में बेहतरीन अभिनय से पहचान बनाई थी।

महेश आनंद के बारे में बहुत कम ही लोग जानते हैं कि वो एक ट्रेंड डांसर भी थे। इसके अलावा महेश आनंद एक्टर के साथ-साथ प्रोड्यूसर भी थे। दोस्तों महेश अपने निजी जीवन में कुछ ऐसे उलझे कि उन्होंने ख़ुद को शराब में डुबो लिया। बताया जाता है कि लगभग 18 साल से महेश आनंद को फिल्मों में काम ना मिलने की वजह से वजे डिप्रेशन में चले गये थे जिससे उन्हें शराब की लत लग गई थी। अंग्रेजी वेबसाइट सिनेब्लिट्ज की खबर के अनुसार, काम ना मिलने के चलते महेश काफी डिप्रेस रहते थे और उसे शराब की लत लग चुकी थी। वह ज्यादातर समय नशे में रहते थे। नशे में वह लोगों को फोन मिला देता थे। 18 सालों बाद उन्हें ‘रंगीला राजा’ के क्लाइमैक्स में डायरेक्टर पहलाज निहलानी ने कुछ मिनट का रोल दिया था।महेश आनंद एक अभिनेता हैं जिन्होंने कई सफल फिल्मों में एक दुष्ट आदमी का किरदार निभाया है।

Mahesh Annand


महेश आनंद ने न तो शराब छोड़ी और न ही दोबारा करियर बनाने की कोशिश की। और फिर वह हुआ जो दिल दहलाने वाला था। वर्ष 2019 के 9 फरवरी को महेश आनंद की मृत्यु उनके घर में हुई। पड़ोसियों ने घर के अंदर से आने वाली बदबू की शिकायत पुलिस में की, जब पुलिस दरवाजा तोड़कर घर के अंदर पहुंची तो महेश की मृत शरीर मिली। पोस्टमार्टम से पता चला कि उनकी मृत्यु ज्यादा शराब पीने के कारण हुई थी।

महेश आनंद की पांच शादियां हो चुकी हैं और उनका एक बेटा भी है। पहली शादी में उन्होंने अभिनेता रीना रॉय की बहन बरखा रॉय से की थी और उसके बाद 1987 में मिस इंडिया इंटरनेशनल, एरिका मारिया डिसूजा, 1992 में मधु मल्होत्रा, 2000 में उषा बचानी से और 2015 में रूसी मूल की एक महिला से शादी की। महेश आनंद बहुत समय तक अकेले रहे थे और शराब की लत ने उन्हें परेशान किया था। उनका एक पुराना फेसबुक पोस्ट वायरल हो गया था, जिसमें उन्होंने अपने बेटे से एक बार मिलने की इच्छा व्यक्त की थी। उन्होंने लिखा था, “मेरे बेटे त्रिशूल, भगवान तुम्हारा भला करें।

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